Sunday, April 3, 2016

रात वैसे ही सरक रही है

कुछ टप-टप सुनाई दी फिर घुल गयी शोर में. मुझे लगा जैसे कोई आहिस्ता से आया मेरे एकांत में और हलके आहट से समा गया हो मौन में. धीरे जैसे कोई दरवाज़ा खुला, एक आधा निमंत्रण देकर छोड़ गया हो. जैसे कोई कह रहा हो अगर इस एकांत में भी तुम मुझे सुन पाये, अगर अभी भी कोई खाली जगह है जिसे तुम भर नहीं पाये तो चले आओ इस ओर. मैं देर तक सुनता रहा. खिड़की से एक सुनहरी हवा ने किवाड़ को आधा खोल दिआ था, और छन -छन कर कुछ टपक रहा था. मैंने सोचा रात है और बेमौसम की कोई बारिश। शायद वह भी खोई हुई है. पता नहीं की बरस जाना है या फिर गुज़र जाना। मैं आवाज़ के पीछे पीछे हो लिआ और पहुँच गया अपनी बालकनी पर. देखा आधी सड़क भीगी पड़ी है और रात वैसे ही सरक रही है जैसे मैंने उसे कल छोड़ा था. 

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