Sunday, September 18, 2011

कल्पना कि उड़ान

क्या कल्पना कि उड़ान मुझे भी बेध कर अपने आपको मुक्त कर पाएगी? 
या फिर एक खामोश उदासी का सत्य हि मुंह बाए खडा रहेगा
निर्लिप्त आकाश गंगाओं के असीम विस्तार में? 
क्या स्वप्न की उस घड़ी मे कोइ न होगा
जब टुकड़े चुन-चुन कर आईना एक चेहरा उभार रहा होगा? 
क्या यह अन्तिम रहस्य की शिला भी उजड जाएगी 
अपने अस्तित्व को जानने से पहले? 

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